बुधवार, 4 जनवरी 2012

...एक दिन हम भी कहानी हो जायेंगे.

चलो बात करते हैं, इश्वर की. आप क्या समझते हैं? क्या है इश्वर ? एक कहानीकार ? क्या वो भी पड़ा रहता होगा यूनिक कहानियों के चक्कर में? और तब कहीं जाकर एक जीवन बनता होगा? क्या होता अगर सच में कोई व्यक्ति हो और इश्वर ने उसके कर्म, उसका भवितव्य अभी लिखना हो?
बुरा लगता है न सोचकर की इश्वर कहानी का लेखक! और उसने जो कहानी लिखी है, हमने जी है, जी रहे हैं. बुरा लगता है न सोचकर की उसको कहानी का प्रारब्ध और अंत ज्यादा से ज्यादा 'प्रभावित भर' ही करता होगा बस ! और कुछ नहीं.
'इश्वर मस्ट बी प्लेइंग डाइस विद अस.'
उस इश्वर की खातिर उसे उदार सिद्ध करने की खातिर मैं भी कहानी से जुडकर कोई कहानी लिखना चाहूँगा. मुझे पता है इश्वर भी ऐसा ही करता होगा...
वो भी हमारे दुखों को महसूसता होगा...
..फिर हम तो इंसान हैं. माया मोह से ग्रस्त ! कितना ही फिक्शन मान के पढ़ें कहानी, कितना ही बड़ा आर्ट वर्क मान लें सिनेमा अगर कहानी डिजर्व करती है तो दो बूँद आसूं तो ओविय्स हैं यार ! और कमला, रीटा, राजेश जैसे किसी भी काल्पनिक कैरेक्टर की खुशियाँ हमें होंट करेंगी ही. 'अद्वेत' हो जाने तक !
या फिर खुद एक कहानी हो जाने तक ! वो कहते हैं ना....
...एक दिन हम भी कहानी हो जायेंगे.

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पर मैं वो लड़की नहीं हो सकता, सिम्पल सा कॉन्सेप्ट है, आप लाख कहानियाँ पढ़ लो, लाख मूवीज से अपने को रिलेट कर लो, किसी अपने (या बेगाने के भी) गम में उदास हो जाओ, उनकी खुशी में 'जेन्युइन्ली' खुश हो जाओ. पर एट द एंड ऑव द डे आप 'आप' ही रहते हो.

सिम्पल सा कॉन्सेप्ट है, कि आपके ऊपर कितने ही कॉन्सेप्ट प्रक्षेपित किये जायें, कितनी ही चीज़ें आप पर फैंकी जायें, आप तक वो ही और उसी तरह से ये पहुंचेंगी जैसे और जिस तरह से आप उन्हें स्वीकार करते हो.
प्रकाश में सभी रंग हैं, पर हरा रंग हरा और गुलाबी रंग गुलाबी है क्यूंकि उसने बाकी सारे रंग अवशोषित कर लिए हैं.

सिम्पल सा कॉन्सेप्ट है, एक जिंदगी का मतलब 'एक और केवल एक' जिंदगी हो सकता है.'एक' इसलिए की जब तक वो है तब तक आपको उसे जीना ही पड़ेगा. और 'केवल एक' इसलिए आप दूसरी नहीं जी सकते. इसलिए वो कोई और को जीने की चाह आपमें एक 'रिक्तता' 'भर' देती है...
"कितना अच्छा होता न अगर..."

ऐसी ही कितनी बातें सोचने पर मुझे मजबूर करती हैं उस लड़की की आँखें...

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इस दिसम्बर आठ साल की हो गयी सोना


उस लड़की की उदास कैनेडियन आँखें.....
काश कि मैं लिखते वक्त उसके दर्द को जी सकता, पर लिखना मैंने है और जीना उसने...
..और मैं क्यूँकर औरों को भी बाध्य करूँ उसके दर्द को समझने को?
ये कहानी कहूँ ही क्यूँ ?
वो आठ नौ साल की लड़की हमेशा झगडती रहती है, हर एक से, छोटी से छोटी बात भी उसे ठेस पहुंचा देती है, आंसुओं का उसकी आँखों से वही सम्बन्ध है जो नमक का आसुओं से होता है. मैं जानता हूँ , उसका ये रोना भावनाओं का एक्सट्रीम है, बुझने वाले दिए की आखरी लौ ! फीलिंग खत्म होने से पहले के इमोशन !

यक़ीनन कुछ सालों बाद उसका स्त्रीत्व मर चुकेगा. वो प्रोफेशनली बड़ी तरक्की करेगी टच वुड ! पति से कोई वैमनस्य नहीं ! बच्चों को अच्छे संस्कार और पैसा दोनों दे पाएगी वो ! यानी ऊपर से देखने पर सब नोर्मल इन्फेक्ट, परफेक्ट !
...वो मुस्कुराएगी वही सोफेस्टीकेटेड ढंग से, पर खिलखिलाएगी नहीं. वो डान्ठेगी, पर लड़ेगी नहीं. वो सुनेगी और पोजेटेवली लेगी, वो रोएगी नहीं !

...ये अभी का रोना उसका, ज़ार-ज़ार 'स्टेप टू बी स्ट्रोंग गर्ल एंड कौन्सिक्वैन्टली अ स्ट्रोंग लेडी' है.

उस लड़की की उदास आँखों के इर्द गिर्द कई झूठी सच्ची कहानियां बन सकती हैं.पर आप या मैं वो लड़की नहीं हैं. ये कहानियाँ भी वो लड़की नहीं है...
पिता कैनेडा गए उसके तो किसी कैनेडियन से शादी कर ली. पर देशभक्ति नामक भावना का हस्तक्षेप हुआ तो भारत वापिस हो लिए. लड़की की माँ भी अन्फोर्च्युनेटली देशभक्त निकली. वहीँ रह गयी. देश दूर था तो वो सुहाना ढोल था, पत्नी दूर हुई तो वो सुहाना ढोल हुई...
..अच्छी बात थी कि पत्नियां स्वदेश की तरह केवल एक होना आवश्यक नहीं था. लड़की के लिए एक गुजराती आया रख ली. शादी बहरहाल अभी नहीं की....
...पिता कहते हैं कि पुरानी वाली को भूल जाओ. और नयी वाली को माँ कहो.
...लड़की अब भी नयी वाली को 'मिस' कहती है,
और पुरानी वाली को 'मिस' करती हैं...
...उस लड़की की उदास कैनेडियन आँखें.

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