गुरुवार, 23 जून 2011

क़र्ज़ में डूबे लोगों के लिए आत्महत्या एक ऐसा इंश्योरेन्स है जिसका प्रीमियम भरने की भी ज़रूरत नहीं पड़ती.

हुआ यों होगा कि आपने मार्केट से दो लाख रुपये उठाये होंगे और उसको शराब जुएँ या और अय्याशियों में खर्च दिया होगा. रुपये खर्च करना सांस लेने से भी ज़्यादा आसान बना दिया गया है अब. चुकता करना मौत से भी मुश्किल.
सबूत : आत्महत्या !
तो आपने झूठ ही लिखा होगा कि आपका पैसा मार्केट में डूब गया. भला मार्केट का पैसा मार्केट में डूब सकता है?
-गणितीय आधार पर नहीं. 2-2=0
-अर्थशास्त्र के आधार पर भी नहीं. उसके आधार पर तो पैसा डूबता नहीं घूमता है. जितना घूमता है उतना बढ़ता है.
-दर्शन-शास्त्र  के आधार पर भी नहीं (तुम क्या लेकर आये थे...)
तो फिर आपको झूठ लिखने की ज़रूरत क्या पड़ी? मौत के बाद किस चीज़ का डर? बदनामी का? प्री डेथ स्टेटमेंट (सुसाइड नोट भी) एक अकाट्य साक्ष्य माना जाता रहा है. इसलिए नहीं कि मरने वला आदमी झूठ नहीं बोल सकता. (जो ज़िन्दगी को झूठा साबित कर दे वो क्या कुछ झूठ नहीं कह/कर सकता. और "बदले की भावना से हत्या ही नहीं आत्महत्या भी तो की जा सकती है" ये ?) बल्कि इसलिए कि 'ऐसा भी तो हो सकता है' का पता लगाना मुश्किल है. क्यूंकि आत्महत्या डूबे हुए जहाज में सभी 'जीवित' लोगों के मर जाने सरीखा है. "उसकी मौत के साथ उसके राज़ भी दफन हो गए".

हाँ तो आपने एक 'देशी कट्टा' की नली भेजे में रखी.अपने भेजे में. आँखें बंद की. भींच के. मानो आप शोर 'देखना' न चाहते हों.ट्रिगर में बीच वाली ऊँगली रखी. उस हाथ की जो रॉक-सौलिड हो गया है इस वक्त. ये वही हाथ था न जो तस्करी का कट्टा खरीदते वक्त काँप रहा था. हाथ क्या? तब तो आपका पूरा शरीर ही काँप रहा था.
...जब पहली बार आपने इस भारी सी चीज़ को अपने हाथ में लिया था. गंदे कपड़े से लिपटी हुई, बिना यूजर मैनुअल के.बाहर ही से उसके सारे कोण, सारे आयाम नाप लिए थे अविश्वास के स्पर्श से. "मेरे हाथ में भी कभी ये चीज़ आ सकती थी ?" आपने ना उसके इस्तेमाल का तरीका पूछा ना ये पूछा कि वो भरी हुई है या खाली? "आदमी घड़ा भी खरीदता है तो ठोक बजाकर." और फ़िर ये चीज़? इसे तो आप ज़िन्दगी में पहली बार खरीद रहे थे. और शायद अंतिम बार भी. आप तो शायद कुल जमा किसी भी चीज़ का सौदा अपनी ज़िन्दगी में अंतिम बार कर रहे थे. इससे पहले आपने क्या ख़रीदा आपको याद है?

हाँ ! अपने  बेटे के लिए लिलिपुट से सिक्स पॉकेट जींस (साला इतने से कम में कहाँ मानता है वो?) और अपनी वाईफ के लिए स्टोन वाली पायल (बेचारी वो तो इतने में ही खुश ). बहरहाल फ़िर भी ये घड़ा जैसा कोई सौदा तो था नहीं, जिसको आप ठोक बजाकर, जांच परख कर लें. ये 'चीज़' तो इन्फेक्ट 'आपको' जांच परख रही थी. वेदर यू डिजर्व इट ऑर नॉट !

बाई द वे...
वो हाथ ! जो उसे खरीदते वक्त काँप रहे थे....
...क्यूँ?
कोई देख ना ले? पुलिस? मुखबिर? जान पहचान वाला? "मरना ही है तो साला बदनामी का क्या डर?" नहीं भाई सा'ब ऐसी बात नहीं है अगर आपको बदनामी का डर ना होता तो आप अपने सुसाइड नोट में अपनी अय्याशियों कि बात ना करते ? लेकिन आप तो कहते हैं कि मार्केट में डूब गया आपका पैसा. आपको मौत का डर नहीं रहा बेशक, पर बदनामी का डर नहीं ये मत कहिये. 'आत्महत्या' और बात है 'बदनामी का डर' और.
...हाँ ! ये ! आप तसल्ली से मरना चाहते थे. सुकून की मौत. कम से कम अपने शर्तों पे. आपने ज़िन्दगी जब अपनी शर्तों से गुज़ारी है (तभी तो ये सब हो रहा है आपके साथ. तभी... ) तो मौत भी अपनी शर्तों से ही आनी चाहिए.

हाँ तो वो हाथ...
अभी बिल्कुल नहीं कांपते ! अगर कांपते होते तो आप आत्महत्या थोड़ी ना कर पाते. क़त्ल करना और क़त्ल हो जाना दोनों एक साथ? जिगरा चाहिए भाई सा'अब जिगरा. येएए... बड़ा ! ये सब कुछ और इससे भी कहीं कुछ ज़्यादा तो आप पहले से ही सोच चुके हैं. दो तीन दिन से सोच ही क्या रहे हैं और आप?

बस बहुत हो चुका बहुत टाल चुके, कहीं वॉश रूम की सफाई करते वक्त आपकी वाईफ (आप वाइफ ही कहते हैं उसे. है ना ?) को पता चल गया तो ? वैसे भी घर की सफाई किये हुए कई दिन हो चुके हैं. कर्जे वाले घरों कि सफाई आमतौर पे 'डेली बेसिस' पे होती भी नहीं.

नहीं ! अब और नहीं टाला जा सकता. बेटे को जींस दे दी. और, एक महीने का राशन आ गया है.और, बीवी की नौकरी लग ही गयी, और, उसके लिए स्टोन वाली पायल ले ही दी.और और...
...हाँ !सुसाइड नोट...
नहीं... उसे लिखे की जरूरत कहाँ है? क्यूँ इतना समय ले रहे हैं आप? जितनी देर करेंगे उतना मन कच्चा होगा आपका .साढ़े सात सौ रुपये कम नहीं होते इस... इस... बकवास चीज़ के लिए. जो ज़्यादा दिनों तक घर में रह भी नहीं सकती.

फ़िर भी एक सुसाइड नोट तो जरूरी ही है. जिससे आपके परिवार वालों पर कोई आंच(?) ना आए...
...इट्स अ सिम्पल केस ऑव सुसाइड.

क्या लिखेंगे आप? "मैं अपनी मर्ज़ी से ख़ुदकुशी कर रहा हूँ?" हद्द है ! 'ख़ुदकुशी' भी भला कोई दूसरों की मर्ज़ी से करता है? आपने ठीक ही किया इस लाइन को काट दिया. मैं तो कहता हूँ कि दूसरा पन्ना ले लीजिये . लोग क्या कहेंगे ? मरते वक्त भी कन्फ्यूज्ड था साला. ना ना 'साला' नहीं कहेंगे. मरने वाले की लोग बड़ी इज्ज़त करते हैं. मरने वाले की ही तो लोग इज्ज़त करते हैं.
हाँ ये ठीक रहेगा...
"मेरी मौत का कोई दोषी नहीं."
कैसे कोई दोषी नहीं?
वो पब का मालिक. वो ऑफिस का बॉस. वो बैंक की कस्टमर केयर अधिकारी (हरामजादी), मकान मालिक, सब्जी वाला, शेयर मार्केट,राजेश, सुरेश, पेप्सी, कोक, ब्लैक बैरी, मेट्रो, ब्लू लाइन, रेड लाईट, ट्रैफिक ज़ाम, ऐश्वर्या, शीला की ज़वानी, भ्रष्टाचार, संसद, इंडिया टी. वी. , गूगल, ट्विटर...
..सब ! इनमें से सब थोड़े थोड़े दोषी हैं. एक भी चीज़ , एक भी चीज़ कम होती इनमें से , हालात ऐसे ना होते आपके !
...ये सुसाइड नोट लिखना तो वरदान ही साबित हुआ आपके लिए (मौत का वरदान. हा !) सब से बदला ले लें. सब से...
सुसाइड नोट के नीचे दस्तखत करना जरूरी है क्या? कर दीजिये . टू बी ऑन अ सेफर साईड.

ये लो अभी तक आपने कपडा भी नहीं हटाया था? साली इसकी जांच भी तो नहीं कर सकते ना आप? क्या कहा था उस दल्ले ने? एक बार 'फाईर' करने के बाद दूसरा 'फाईर' आधे घंटे बाद. क्यूंकि हाथ में फटने कि कोई 'गारमटी' नहीं. लेकिन पहले फाईर की 'फुल्ल गारमटी'.


-XXX-


आप अब भी यकीं नहीं कर पा रहे ना ये सब जो आप करने वाले हैं? अच्छा ही है आपके लिए. सच 'रॉकेट साइंस' सरीखा है और भ्रम के लिए 'रॉकेट' की आपको क्या ज़रूरत. चाहो चाँद में पहुँच जाओ ! मुगलते में ही रहो, मरने के लिए बड़ा काम आता है.
...और क्या नहीं तो इतना आसान होता ट्रिगर दबाना? वो एक पल, वो एक अंतिम पल...
ज़िन्दगी और मौत के 'ठीक' बीच का. जब आपको पता है की ये पल 'अमुक' पल है. इस पल से अगले पल आप नहीं होंगे...
(आपको अपनी बीवी की एक पुरानी बात पे भी हँसी आती है: देख लेना जब में नहीं होउंगी तब मेरी वकत पता चलेगी. जान, वकत तो पता बेशक लगेगी लेकिन तुमको ये बात कैसे पता लगेगी? )

इस पल से अगले पल आप नहीं होंगे...
ये ज़िन्दगी जो आपने जी है... (क्या फर्क पड़ता अगर पैदा होते ही मर जाते. या पैदा ही ना होते? क्यूंकि जो जिया वो तो साला एनीवे बीत चुका. टू फिलोस्फिकल हाँ? हो जाता है आदमी, मरते वक्त फिलोस्फिकल भी हो जाता है. )

ये कपड़े जो आपने पहने हैं...

वो बहसें... राजनीती से लेकर मोबाइल हेडसेट तक. (क्या फर्क पड़ता है 'सिम्बियन' हो या 'एंडरोइड'? नहीं ! फिलोसफी कि बात नहीं. एक दो फीचर ही तो कम ज़्यादा होने थे...)

वो मूवीज़... (आप सुनिश्चित नहीं कर पा रहे कि रिवाल्वर सीने से लगायें या भेजे से ? ज्यादातर मूवीज़ में तो भेजे से ही लगाते हैं... )

वो शहर जो आपने घूमे हैं... (आउट ऑव स्टेशन जाना भी मौत ही है, एक शहर के लिए. आप एक वक्त में दो जगह नहीं हो सकते. और एक वक्त में एक और केवल एक ही जगह कि घटनाओं को प्रभावित कर सकते हैं. अब होगा इतना कि आप किसी भी जगह कि घटनाओं को प्रभावित नहीं कर पाइयेगा. इस घटना को छोड़कर ऑफ़ कोर्स... )

वो मॉल जहाँ से आपने अपने पाँच साल के बेटे और चार साल की वाईफ के लिए शॉपिंग कि है... (साले हैं तो शैतान ही दोनों चाहे कुछ भी कहो... पर पिछले चार पाँच दिनों से दोनों गुमसुम रहते हैं, मार भी तो बहुत खाता है बड़ा वाला आजकल...)

ना ना मत सोचिये बेड़ियाँ है ये सब. माया ! बंधन !! मोह !!! मानव की सबसे बड़ी कमजोरियां हैं ये...

वो शादी की पहली सालगिरह, वो दो हज़ार सात की दिवाली...
याद भी साली, कितनी ही बुकमार्क करके रख लो, कितना ही उनके ऊपर 'मोस्ट इम्पोर्टेंट' लिख लो आयेंगी बेतरतीब ही, शादी याद नहीं आ रही आपको, पर पहली सालगिरह ज़रूर याद है, और दिवाली भी देखो 'दो हज़ार सात की', ऐसी क्या ख़ास बातें थीं इन दिनों में? यकीनी तौर पर नहीं कह सकते ना आप,

आप महत्वपूर्ण लम्हे रिकॉल करना चाहते हैं, और याद क्या आता है आपको? काम वाली के साथ आपकी बीवी की साधारण सी (बहुत साधारण सी) नोक झोंक, बेटे का बैट हाथ में लेकर किसी शाम अन्दर घुसना, वो अचार के मर्तबान जिनको आपकी वाईफ बार बार ऊपर नीचे करती है. एक धुन सी सवार है उसे भी... पिकलो-मिनिया???

वो 'आलस' के 'जोश' में आकर एक दिन यूँ ही ऑफिस ना जाना...
..और? ...और?
हाँ... अब मिला सिरा... उसके अगले दिन से कभी ऑफिस ना जाना. बिजनेस के लिए रात दिन प्लान आउट करना. अपने बिजनेस के लिए ! वो आत्मविश्वास (आप तो अब भी उसे ओवर कॉन्फिडेंस नहीं मानते ना?), वो शुरुआत की छोटी छोटी असफलताएं, वो बाद की बड़ी बड़ी सफलताएं, वो शुरुआत के छोटे छोटे क़र्ज़, वो बाद के बड़े बड़े (क्वाईट ऑव्यस) क़र्ज़....
....
....
....आप ये क्यूँ भूल गए की एक गोली चलने के बाद दूसरी गोली आधे घंटे बाद ही चलानी थी? वो तो कट्टा ही अच्छा था, हाथ में नहीं फटा आपके.
...बहरहाल कॉग्रेट्स  !


2 टिप्‍पणियां:

  1. ये क्या लिख दिया आपने! समझ में आता भी नहीं और समझ में आ भी जाता है।

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  2. 'प्राची के पार' पर इस पोस्‍ट के लिंक के साथ मेरी टिप्‍पणी-
    शायद पहली बार आया यहां. बहुत दिनों बाद ऐसी पोस्‍ट देखा, जिसे दुबारा पढ़ने का मन होता है.

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