गुरुवार, 27 अक्तूबर 2011

...यही जुनूँ यही वहशत हो, और तू आए !



कि मैं बहुत ऊँची मंजिल से गिरा हूँ, पर गिरने के रास्ते में कहीं भी 'हार्ट अटैक' नहीं हुआ. क्या कह सकता हूँ, कि मुझे फर्श के साथ संपर्क होने पर होश आया !
डर है कि मैं कितना ही पोजिटिव सोचूं पर नहीं ! ये दूसरी बार मिलना पहली-पहली बार मिलने की तरह कतई नहीं होगा, क्यूंकि मेरे पास तुम्हें प्रेम करने के, तुम्हें साथ जोड़े रखने और शायद वक्त के साथ साथ तुम्हें अपना विश्वास दिला सकने के तो कई मौके, कई कारण होंगे, पर कोई कारण ऐसा नहीं होगा कि तुमको भुलवा सकूँ पुरानी चीज़ें. और इसलिए...
...और इसलिए, तुमको कोशिशें करनी होंगी, मुझे मालूम है, तुमको बहुत कोशिशें करनी होंगी उन सारी चीजों को भुलाने के लिए, उससे भी कहीं कहीं ज़्यादा जितनी की मुझे भुलाने के लिए कर रही थीं तुम कुछ दिनों से.
यकीनन अगर पहली कोशिश सफल हुई तो ये भी होगी. और अगर पहली कोशिश असफल हुई है तो फ़िर क्वाईट ओविय्सली ये कोशिश तो बिना ज़्यादा कोशिश के सफल होगी !
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आँखों में आंसू हैं, जिनका कोई मोल नहीं खुद की आँखों से भी देखूं तो भी.
देखो ऐसा नहीं है कि तुम बहुत अच्छी हो, कि अगर होती तो मुझे बताती कब तुम्हें मेरी जरूरत है, जैसे तुमने तब बताया था जब मेरे दूर के चाचा को 'शायद' मेरी जरूरत थी. कि तुम्हारे पास कई ऐसे सबूत हैं कि जब भी मैं प्रोवोक हुआ हूँ मेरी परफोर्मेंस बेस्ट रही है, 'युवी' यू सी ! 'राहुल द्रविड़' मैं नहीं हूँ.
पर, फ़िर सोचता हूँ, तुम सही हो कि कोई बताता नहीं कि उसे तुम्हारी जरूरत है...

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कि जब मैं जाना हूँ कि मैं दोषी हूँ ठीक उस वक्त तुम नहीं हो. नहीं ये तो मेरी एक्सक्यूज़ है...
सही बात तो ये है कि तुम नहीं हो इसलिए जान गया हूँ...
....सही बात तो ये है दरअसल !
अकेले होना भी दो तरह का होता है, एक वो जब आपके पास कोई भी नहीं होता, दूसरा जब सब होते हैं (या नहीं भीं हो कोई फर्क नहीं पड़ता, इट्ज़ बैटर इन्फेक्ट ) पर 'वो कोई एक' नहीं होता.
कि जब आप पहले तरीके के अकेले होते है तब कोई भी आकर आपको खुश कर सकता है, पर दूसरी दशा में, नथिंग एल्स विल डू. टू बी मोर स्पेसिफिक, पहली स्थिति में आप बहाने ढूंढते हैं, व्यस्त रहने के, भीड़ में रहने के, टू गेट इनडल्ज़ विद...
...दूसरी में आप बहाने ढूंढते हैं तन्हा रहने के, काम से बच निकलने के और बस अपने को कोसने के, कि या तो 'कुछ भी नहीं' या... या... स्साला...
'कुछ भी नहीं'....

मुझे इसलिए परेशान मत छोड़ो कि तुम भी तो इन चीजों से गुज़र चुकी हो और इन सब का दर्द जानती हो.
पर, फ़िर...
मुझे इसलिए माफ़ मत करो कि तुम इन सब चीज़ों से गुज़र चुकी हो और इन सब का दर्द जानती हो.
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क्या किसी इंसान को केवल इसलिए छोड़ा जा सकता है कि उसने ढेर सारी गल्तियाँ की हैं और उसको कोई और इस तरह प्रेम नहीं कर सकता? फ़िर तो वो इन्सान यकीनन प्रेम किये जाने योग्य है !
...या तुम बस नाराज़ हो ?

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ठीक है मैंने ही एक दिन कहा था "कोई भी चीज़ हमेशा नहीं रहती, नथिंग इज़ फोरेवर, एहसास भी नहीं, और प्रेम भी तो एक एहसास है." और तुमने कहा था कि ऐसा नहीं है, चित्रलेखा लिखने वाला भी कोई भगवान नहीं. मैं भी अब कहता हूँ कि दो इंसानों के ना चाहते हुए कभी प्रेम ख़त्म नहीं हो सकता, दो इंसानों के रहते-रहते कभी प्रेम ख़त्म नहीं हो सकता, उसके बाद भी नहीं. मेरे पास इसका कोई सबूत या इसका कोई लोजिक नहीं है पर तुम्हारी बातों पे अटूट विश्वास है, कि जो कभी तुमने प्रेम में रहते हुए कही थीं. मुझे तुम्हारे प्रेम पे विश्वास है.
(उफ्फ कि, मैं माँ-बेटे या भाई-बहन के प्रेम का सबूत नहीं दे सकता.)

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एक बात जो मैं अपने लिए भी कहना चाहता हूँ, कम से कम एक बात कि मेरी नज़रों में तुम्हारे लिए प्रेम ख़त्म नहीं हुआ कभी, और यकीन के साथ कह सकता हूँ कि कभी नहीं होगा. कभी नहीं... कभी नहीं...
...तुम्हारी कसम ! (कि मैं अब झूठी कसम नहीं खाता तुम्हारी जो मेरे लिए मजाक थीं पर तुम्हारे लिए इनके मायने थे.)
...तब भी नहीं जब मैं तुमसे नाराज़ था, तब भी नहीं जब मैं तुम्हारा साथ नहीं दे पाया. तब भी नहीं होता, कि अगर जो मैंने किया वो तुम करती.
सबूत: अभी भी नहीं हो रहा देखो !
लेकिन दुःख तो यही है कि तुम कभी नहीं करती वो सब कुछ जो मैंने किया, तुम नहीं कहती वो सब कुछ जो मैंने कहा, तुम करती वो सब कुछ जो मैं नहीं कर पाया, तुम कहती वो सब कुछ जो मैं कभी कभी नहीं कह पाया...

"मैं डरपोक हूँ, मतलबी हूँ, दोगला भी हूँ, उन सब लोगों की तरह हूँ जिनसे कभी तुमने नफ़रत** की थी."
...ये तुमने कभी नहीं कहा ! किसी को भी नहीं कह सकती तुम ऐसी बातें दरअसल. **और किसी से नफ़रत कर भी नहीं सकती.
पर क़ाश कहती !! पर क़ाश करती !!

"मैं बहुत अच्छा हूँ, कि मैं सपना हूँ या सच, कि जैसे तुमने मुझे प्यार किया है वैसे अब तुम किसी को नहीं करोगी."
क़ाश ना कहती !! क़ाश ना करती !!

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बुरा था कि तुम रोती थी, बुरा है कि तुम रोती नहीं !
बुरा ये है कि, तुम अच्छी हो. बुरा ये है कि मैंने बहुत बहुत सारी गल्तियाँ करी ! अच्छा ये है कि तुम अब भी अच्छी हो, अच्छा ये है कि मैं जानता हूँ कि मैंने बहुत सारी गल्तियाँ करी ! सबसे अच्छा ये है कि तुम अब भी दूर नहीं हो, चाहे इससे पास आने की संभावना कम है.

तुमने कहा था कि जब मैं तुमसे जुदा हो जाऊँगा तब मैं शायद एक अच्छा राइटर हो जाऊँगा.
तुमने कहा था कि अच्छा लिखने से ज़्यादा अच्छा है खुश रहना.

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तुम हमेशा-हमेशा खुश रहो ये मेरी दूसरी - प्राथमिकता है और हमेशा रहेगी, मेरे साथ खुश रहो ये मेरी प्रथम प्राथमिकता है,
कि मेरी सेल्फ रिस्पेक्ट तुम हो तुम.

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पर फ़िर भी जानती हो मुझे अपना लिखा सब कुछ जाया क्यूँ लग रहा है,
क्यूंकि, जब बहुत कुछ करने की बारी आई थी तो ज़्यादा कुछ किया भी तो नहीं ! कारण कुछ भी रहे हों,
क्यूंकि इन सब शब्दों में वो आ ही नहीं पा रहा, इन सब बातों में...
आखिर एक बात, ज़्यादा से ज़्यादा कितना प्रेम, कितना अवसाद, कितनी शिद्दत, कितनी याचना अपने अन्दर ले सकती है, कोई एक बात जो कह दूं तुम्हें तो रो ही पड़ें दोनों फूट फूट कर. कोई एक बात जिससे सब बातें भुलाई जा सकें ? कोई एक बात जो बन जाए, इश्वर करे कहते कहते ही...
...वो बात जिसमें 'मौन रहने' से भी ज़्यादा अभिव्यक्ति हो ?

1 टिप्पणी:

  1. उस एक बात के लिए कही गयी सभी बातों से,
    अगर उस एक बात का एहसास तुम्हे होता हे ,
    जो की बेहद सहज और सरल हे,
    पर मुश्किल हे जिसे समझना ,
    और असंभव सा हे जिसे समझाना,
    क्योंकि शब्द असमर्थ से हैं,और
    मेरी ख़ामोशी में भी वो होश नहीं,
    अगर तुम्हे इल्म हे उसका तो मेरा इतना भर कहना सार्थक हे,
    अन्यथा तुम्हे, पूरी जिंदगी और मुझे भी चुकाकर ,
    अनेक प्रयासों के बाद भी मेरी बात अधूरी ही रहेगी ।।

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