बाथरूम से कई सारी आवाज़ें आ रही है...
शावर के पानी के बीच....
"सजना है मुझे सजना के लिए... उठे? कि... नहीं?"
आपकी 'कुंठाओं की कल्पनाशीलता' बड़ी दूर तक जाके रूकती है.आखिर कोई आपके लिए, बस आपके लिए सजता है.
सहसा आपको याद आता है कि आपकी जेब में १७ रुपये ही हैं. तो आप उसका पर्स खोलते हैं. वो नहा के आते हुए आपको देख लेती है. आप अपने बचाव में उसके होठों में एक चुम्बन अंकित कर देते हैं. वो प्रभावित होकर भी नहीं होने का झूठा नाटक करती है.वो अपना पर्स आपसे छीनती है और ५० रूपये आपके बिस्तर के ऊपर फैंक देती है. आप ठंडी चाय उठाते हैं और ग्लास ठीक उसके पैरों में फैंक देते हैं.
"तुम मेरे ऊपर ये एहसान करना बंद क्यूँ नहीं करती?"
आप उसकी कलाइयों को पकड़ के पीछे कि तरफ मोड़ देते हैं. वो गर्दन ऊपर उठा के सिसकियाँ लेती है बोलती कुछ नहीं. जब आप देखते हैं कि उसकी कलाइयाँ लाल हो गयी हैं और वो "ओह ! मम्मा..." कह के हाथ छुड़ाना चाह रही है तब आप उसकी कलाई छोड़कर उसपर एक और दया करते हैं.
वो अब भी कुछ नहीं कहती तो आपको खीज होना लाज़मी है.
"अच्छा लगता है ना तुम्हें मुझसे बड़ा बनकर."
...आप लगातार बडबडा रहे हैं...
"ये दया है जो तुम मुझ पे करती हो.और तुम अच्छी तरह से जानती हो."
वो किचन की चाबी आपके हाथों में पकड़ा के आपके माथे को चूम के, रात की सूजी हुई आँखों से घर से बाहर निकलती है.
आप इग्नोर्ड महसूस करते हैं. और उसके घर से बाहर निकलते ही उसे फ़ोन करते हैं.
२५-३० कॉल के बाद वो फ़ोन उठाती है
"मैं मीटिंग में हूँ."
आप उसका फैंका हुआ ५० का नोट उठाते हैं और नीचे के खोमचे में सिगरेट लेने के लिए निकल पड़ते हैं. आपकी नज़र उसके अन्तः वस्त्रों में पड़ती है और आपकी आँख बदले की भावना से चमक उठती हैं.
"आने दो आज उसे ! चाहे कितना ही ऊपर उड़े आना तो उसे नीचे ही है."
आपको पता ही नहीं चलता की पिछले ४ सालों में रूम शेयरिंग कब लिव इन रिलेशन में लिव इन रिलेशन कब प्रेम में प्रेम कब सेक्स में और सेक्स कब युद्ध में बदलता गया?
(कम से कम आपकी तरफ से.)
आप नीचे खोमचे में सिगरेट के लम्बे लम्बे कश खींच के जैसे ही वापिस रूम में आते है देखते हैं ३ मिस कॉल, कॉल बैक करते हैं.
"मेरा फोन क्यूँ नहीं उठाया."
उधर से कोई आवाज़ नहीं आती. तो आप ही...
"ठीक है मीटिंग में थीं पर मैं तो तुम्हारे घर से निकलते ही फ़ोन कर रहा था."
"शाम को ऑफिस से आते वक्त कुछ लाना है?"
"मेरा फ़ोन क्यूँ नहीं उठाया?"
"साएलेंट मैं था ! कुछ लाना है आते वक्त?"
"एक और एहसान" आप उसे सुनाते हैं कहते नहीं.
फ़ोन डिस्कनेक्ट हो जाता है.
रीडायल...
"सुनो"
"हम्म.."
"एक क्वार्टर ले आना सस्ता वाला ही सही ! और कुछ स्नेक्स."
आप एक्स्पेक्ट करते हैं कि वो पिछली के पिछली बार की तरह कहेगी
"मैं कैसे वाइन शॉप ?"
पर वो कुछ नहीं कहती. तो आप पूछते हैं...
"तुम कैसे ?"
आप एक्स्पेक्ट करते हैं की वो पिछली बार की तरह कहेगी...
"ऑफिस में बहुत हैं जो तुम जैसा शौक रखते हैं."
पर वो कुछ नहीं कहती . अब आप उसे सुनाते हैं कहते नहीं....
"हाँ तुम्हारे तो ढेर सारे पुरुष मित्र हैं हीं. वैसे तुम भी कोई कसर तो नहीं ही छोडती होगी. गलत भी क्या है. आदमी को अपनी कमजोरियां ना भी पता हों पर स्ट्रेंथ तो पता होनी ही चाहिए. आगे बढ़ने में बड़ा काम आती हैं. ठीक ही तो है."
फ़ोन फ़िर डिस्कनेक्ट हो जाता है.
"साली ! बिच !!"
XXX
अब आप अकेले हैं, खुद से भी लड़ लिए उससे भी. खाना खाने का मन नहीं है. गुनाहों का देवता....
आप पढ़ते पढ़ते याद करते हैं कैसे रात भर बैठ के उसने आपको ये किताब पूरी सुनाई थी. आप याद करते हैं कब कब और कितनी कितनी बार वो रोई थी और आप हर बार उसके रोने पर मुस्कुराये थे. वो मुंह टेढ़ा करके कैसे आपक चिढाते हुए और अपने आंसुओं को छुपाते हुए... आगे पढना शुरू करती थी? एक एक डिटेल याद है आपको. एक एक !!
और हाँ , वो...
कैसे किताब के पूरा ख़त्म होने पर उसने आपके बगल में बैठकर आपकी एक बाँह में अपनी बाँहों का घेरा डाल दिया था. आपके कन्धों में अपना सर रखा था.
और... और...
कैसे उसके नमकीन आंसू आपने होठों से चखे थे. तब, उसकी वो हिचकियों के बीच हंसी !
"पागल हो तुम ! एक दम! "
ठीक ठीक याद नहीं ऐसा कुछ ही कहा था. या बस चुप होके वो आपकी आँखों में देख रही थी...
लेकिन उसकी आँखों ने क्या कहा था याद है न?
"क्या है? जानते भी हो... कितना प्यार करतीं हूँ तुम्हें. "
"क्या देख रही हो?"
"ऐसे ही. बस... ऐसे ही."
तब भी वो कम ही बोलती थी.
लेकिन मौन का भी पैराडाईम शिफ्ट होता है...
आप याद करते हैं कैसे उसे कुछ पन्ने और कुछ लाइंस दोबारा पढने को कह था.
"अगर पुरुषों के होंठों में तीखी प्यास न हो, बाहुपाशों में जहर न हो, तो वासना की इस शिथिलता से नारी फौरन समझ जाती है कि संबंधों में दूरी आती जा रही है। संबंधों की घनिष्ठता को नापने का नारी के पास एक ही मापदंड है, चुंबन का तीखापन।"
और इस तरह जब आप अभी किताब पढ़ रहे हैं...
...पढ़ते पढ़ते वक्त की गति धीमी हो जाती है... थोड़ी 'वक्त' के बाद 'वक्त' रुक जाता है. और फ़िर एक वक्त ऐसा भी आता है की 'वक्त' पीछे की ओर...
वक्त में कुछ शब्दों के बाँध बन जाते हैं. फिर बनता है समय का भंवर और आप गोल गोल घूमने लगता हैं...
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"तुम चिंता मत करो सब ठीक हो जायेगा."
मानो उसके ये कहने भर से सब ठीक हो जायेगा. उसकी आँखों में आपकी परेशानियों के आँसू हैं और फ़िर आप कहते हैं...
"तुम चिंता मत करो. सब..."
आज वो आपको व्हिस्की पीने से नहीं रोकती. बस नज़रें नीचे झुका के किसी भी चीज़ को अपने नाखुनो से कुरेदते हुए कहती है "आज के दिन मेरी खातिर मत पियो."
और आप बोट्म्स अप यूँ करते हैं मानो आप प्याला फैंक के कह रहे हों
"लो जानां ! तुम्हारे लिए कुछ भी."
और फ़िर...
वो एहसास अच्छा होता है या बुरा पता नहीं. जब कल का दिन सौ परेशानियाँ लेकर आने वाला है तब लगता है कि उसकी कमर का तीखा वक्र मानो आपके पकड़ने के लिए ही बना है. इतना ज़्यादा भींच लेते हैं आप उसे कि...
...और वो आपकी बाहों में अपना सब कुछ समर्पित करने को तैयार. पूर्ण समर्पण !
'ग्यारह मिनट' बाद, आपको अपने से अलग करके वो सौ नम्बर डायल करती है...
"हेलो डॉक्टर सा'अब."
"जी ये पुलिस स्टेशन हैं मैडम."
"कोई नहीं जी आप ही आ जाइये"
तसल्ली से सारी बात 'डाक्टर सा'अब' को बता के, अपना मोबाइल चिहुँकते हुए बेड पर फैंकती है.
"आज फ़िर जीने की तमन्ना है."
थोड़ी देर आपको बड़े प्यार से देखती है. आपके ठन्डे माथे का चुम्बन लेती है.
"बास्टर्ड."
...अब तक आप 'पूरी तरह से' मर चुके होते हैं.
खतरनाक........................
जवाब देंहटाएंबस यही पहला और आखिरी रिएक्शन..
बाकी अन्दर जो उथल पुथल मचाई है दर्पण डियर उसके बारे में बात फेस टू फेस करेंगे कभी..
!!!! स्तब्धता!!!!
जवाब देंहटाएंऔर मेरा कमेन्ट कहाँ गया?
जवाब देंहटाएंमुक्ति? 'twist' काफी पेचीदा है, लेकिन माकूल |
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