बुधवार, 18 मई 2011

थकेली विदिशा की पिटेली इस्टोरी

विदिशा लड़की थी, विदिशा नदी सी बहती थी. विदिशा के भाई का नाम राजेश था राजेश को पढ़ाने की बड़ी कोशिश हुई. राजेश इंटर तक ही पढ़ पाया. विदिशा को नहीं पढ़ाने की बहुत कोशिश हुई विदिशा इंटर तक ही पढ़ पायी.
विदिशा खूबसूरत थी. विदिशा बहुत खूबसूरत नहीं थी. अपने से खूबसूरत लड़कियों से चिढ़कर और अपने से बदसूरत लडकियों को चिढाने के लिए विदिशा ने ज़ल्दी ज़ल्दी प्रेम किया, ज़ल्दी ज़ल्दी कौमार्य खोया और ज़ल्दी ज़ल्दी बदनाम हुई.
विदिशा की बदनामी उसके घर तक पहुंची.विदिशा का घर से बाहर निकलना बंद कर दिया गया. राजेश खुश हुआ. पर राजेश के खुश होने से भी विदिशा की इज्जत वापिस नहीं आई. विदिशा की शादी काफी छोटी उम्र में काफी बड़े उम्र के आदमी से कर दी गयी. राजेश और खुश हुआ. पर राजेश के और खुश होने से भी विदिशा की शादी धूम धाम से नहीं हुई.
विदिशा का पति शराब पीता था. विदिशा का बाप भी तो शराब पीता था. विदिशा के घर में मर्दों को शराब की आदत थी. विदिशा के घर में औरतों को शराबियों की आदत थी. विदिशा का बाप एक दिन मर गया. दूसरे दिन विदिशा का भाई मर गया और तीसरे दिन उसका पति चल बसा. विदिशा के पति की एक बच्ची थी. और उस बच्ची को पति के मरने के बाद भी विदिशा ने ही पाला.
विदिशा की बदनामी एक दिन मायके से ससुराल आई. इसलिए विदिशा के ससुर के मन में लड्डू फूटे. विदिशा के ससुर ने विदिशा को खरी खोटी सुनाना शुरू किया. इसलिए विदिशा ने अपने ससुर को अपनी इज्जत लूटने से मना नहीं किया और तब ससुर ने भी उसे काम पे जाने से मना करना उचित नहीं समझा .
गलत ! विदिशा काम पे नहीं जाती थी. लोग काम से घर पे आते थे. किसी चौथे दिन विदिशा का ससुर भी चल बसा. अब घर में कोई आदमी नहीं था. इसलिए घर में आदमियों का तांता लगा रहता था. विदिशा के ग्राहकों में उसके पुराने आशिक भी थे. विदिशा के आशिकों में उसके पुराने ग्राहक भी थे.विदिशा अपनी बेटी को बहुत चाहती थी. इसलिए चिमटे और चप्पल से मारती थी.
विदिशा की लड़की पड़ोस की विम्मो की तरह ही बड़ी हो रही थी. विदिशा की लड़की को बड़े होने से पहले ही ताने सुनने की आदत थी. और इसलिए विदिशा के न चाहते हुए भी विदिशा की लड़की खूबसूरत हो गयी थी , विदिशा की लड़की पढने में तेज़ भी थी. इसलिए जब इस बार विदिशा की लड़की के मैथ्स में कम नम्बर आये तो विदिशा को शक हुआ.
विदिशा की लड़की ने उसे बताया की उसका 'वो' ऐसा नहीं है. तब विदिशा ने अपनी लड़की को समझाया कि सब मर्द एक से होते हैं. विदिशा की लड़की ने विदिशा से कहा कि विदिशा एक ही तरह के मर्दों से मिली है. विदिशा ने अपनी लड़की झापड़ मारा और पूछा कि क्या उसकी अपने पिता के बारे में भी यही राय है ? विदिशा ने दादाजी के बारे में राय नहीं पूछी.
विदिशा बस इतना चाहती थी कि उसकी बेटी का भविष्य उसके अपने वर्तमान सा न हो. विदिशा ने पूछा कि उस लडके का नाम क्या है. और ये जानने के बाद कि उसका राम विक्रांत है उसने पूछा कि विक्रांत ने उसके साथ कुछ ऐसा वैसा तो नहीं किया?
उसकी बेटी ने बताया कि दुनियाँ केवल स्त्री पुरुष सम्बन्ध तक ही सीमित नहीं.
विदिशा ने राय दी कि उसने दुनिया देखी है और औरत के लिए इतनी ही है. या फिर इससे बच के निकलने भर तक की.
बेटी ने कहा कि दुर्योग से विदिशा ने वही दुनियाँ देखी है . जहाँ पर...
विदिशा ने बात बीच में काटकर अपनी बेटी को लड़की होने के लिए कोसा. उसकी बेटी ने बात बीच में काटकर विदिशा को रंडी होने पर.
विदिशा ने पूछा कि क्या विक्रांत को विदिशा के बारे में पता है. विदिशा की लड़की ने विदिशा को फिर याद दिलाया कि विक्रांत वैसा नहीं है.
विदिशा ने चावल में से कंकड़ बीनते हुए कहा कि हो न हो विक्रांत के बाप को विदिशा बारे में ज़रूर पता होगा.
विदिशा की बेटी सवाल हल करते हुए मुस्कराहट न रोक सकी. विदिशा चावल बीनते हुए मुस्कराहट न रोक सकी.
विदिशा की बेटी ने एक दिन अपना कौमार्य खोते खोते विक्रांत को अपनी माँ के बारे सब कुछ बता दिया. विक्रांत ने विदिशा की बेटी से शादी का वादा किया. विदिशा की बेटी खुश हुई और इसलिए फिर से मैथ्स में कम नम्बर लायी. और इसलिए फिर से विदिशा से ताने सुने. विदिशा ने अपनी बेटी से विक्रांत को घर बुलाने को कहा. 
विदिशा ने  विक्रांत के बाप को घर बुलाने को नहीं कहा. लेकिन फिर भी विदिशा की बेटी ने बताया कि विक्रांत का  पिछले २२ सालों से कोई नहीं था. और पिछले दो सालों से भी उसकी 'विदिशा की बेटी' भर है बस.
विदिशा मानती थी कि जैसे प्रगाढ़ प्रेम होने के लिए पहले नफरत होना ज़रूरी है. वैसे ही पूर्ण विश्वास होने से पहले अविश्वास.
इसलिए ढेर सारे अविश्वास के बाद ही विदिशा ने  विक्रांत को भला लड़का मानना शुरू किया. ढेर सारे लड़कों के बाद ही विदिशा ने विक्रांत को अपना दामाद मानना .
विदिशा की लड़की ख़ुशी से फूली नहीं समाती और सोची समझी रणनीति के तहत अपनी पढाई छोड़ देती है. इस तरह विक्रांत की पढाई बिना पैसों की दिक्कत के पूरी हो जाती है. विदिशा काम करना बंद कर देती है क्यूंकि वो मानती है कि क्रिकेट की तरह इस काम में भी पीक में संन्यास लेना शुभ माना जाता है. विदिशा विक्रांत से सीधे पैसे नहीं मांगती पर अबकी बातों से विक्रांत को समझ आता है कि विदिशा के घर में पैसों की कमी है. विक्रांत अगले ही दिन विदिशा के हाथ में पैसे रख देता है. विदिशा खुश होती है और झूठ मूठ कहती है कि वो इसे चुका नहीं पाएगी. विक्रांत कहता है कि ये तो विदिशा के ही पैसे है जो वो विदिशा को लौटा रहा है. विदिशा और खुश होती है. विक्रांत कहता है कि विदिशा के चौबीस हज़ार सात सौ रुपये चुकाने में तो उसे सालों लग जायेंगे. विक्रांत आगे बोलता है कि अगर कभी उसने पैसा चुका भी दिया तो भी विदिशा को चिता करने कि जरूरत नहीं. अब विदिशा अपनी ज़िंदगी में सबसे ज्यादा खुश होती है. वो सोचती है कि खुशियों का मायने हो न हो विक्रांत होता है.विक्रांत अब भी बोलता रहता है, जब विदिशा के रेट पांच सौ हैं तो उसकी बेटी के ज्यादा न सही तीन सौ तो बनते ही हैं. हर बार के. इस तरह विदिशा की ज़िन्दगी आराम से कट जाने के बारे में विक्रांत कई तर्क देता है. पर विदिशा की बेटी की ज़िन्दगी के बारे विक्रांत कोई बात नहीं कर पाता.
विदिशा खुश होती है कि इस वक्त उसकी बेटी कहीं और गयी है. और आज रात जब वो अपने और अपनी बेटी के खाने में कुछ मिलाएगी तो उसे शक नहीं होगा.
विदिशा खुश होती है कि अच्छा हुआ जैसा उसकी बेटी ने कहा था उसने उतनी ही दुनिया देखी. और विदिशा सबसे ज्यादा इस बात से खुश होती है कि उसकी बेटी कोई और दुनिया देखने से पहले ही मर जायेगी.
लेकिन इतनी ख़ुशी होने के बाद भी वो विक्रांत को ख़ुशी ख़ुशी विदा तो करती है पर विक्रांत की उसके साथ भी एक रात सोने कि इच्छा पूरी नहीं करती.



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