मंगलवार, 13 जुलाई 2010

यूज़ टू

"चलो ना छोना. तुम्हारा फ्री चेक अप तो एनी-वे ड्यू है."
"श्वेता ! अभी पूरा साल पड़ा हुआ है लव. "
"कहाँ?  देखो... हार्डली २  महीने  ही बचे  हैं  मेडीक्लेम के रिन्यूवल में."
"बट !"
"चलो ना प्लीज़..."
"......................"
"फ़िर तुम्हारा ऑफ भी युटीलाईज़ हो जाएगा. आते वक्त निरुलाज़ से खाना पैक करवा लेंगे. इसी बहाने आउटिंग भी हो जायेगी." 
"व्हटएवर"
(गोया हॉस्पिटल नहीं 'लोट्स टेम्पल' या 'सेलेक्ट सिटी वॉक' हो या फ़िर लॉन्ग ड्राइव.)

XXX





प्राइवेट हॉस्पिटल में भी कतारें बढ़ने लग गयी हैं. या तो लोग अमीर ज़्यादा हो रहे हैं. या बीमार ज़्यादा हो रहे हैं. या बस, लोग ज़्यादा हो रहे हैं.
एक चीज़ जो मैंने शिद्दत से महसूस की है, 'शुष्म' स्तर पर वो ये कि, जहाँ सरकारी/खैराती  हॉस्पिटलज़ में बीमारी और मृत्यु की वाईब्ज़ होती हैं वहीँ प्राइवेट में रिकवरी, गेट वैल सून की वाईब्ज़.स्थूल स्तर पर, 'लाइज़ोल' बनाम 'फिनाएल'.आधी बीमारी तो आपकी हॉस्पिटल पहुँच के ही ठीक हो जाती है.
मुझे हिंदी फिल्मों का जुमला याद आ रहा है...
"अब इन्हें दवाओं की नहीं प्राइवेट हॉस्पिटल की ज़रूरत है."
लगभग डेढ़ साल बाद आया हूँ हॉस्पिटल... डेढ़ साल में ही इतने बदलाव ?
पिछली बार जब श्वेता का मिस कैरेज हुआ था. इसी हॉस्पिटल में. मैंने उसे बड़े ही नोर्मल वे में लिया था. पर बाद में पता चल कि हमें हॉस्पिटल के चक्करों के बाद अनाथालयों के भी चक्कर लगाने पडेंगे. डॉक्टर कहते थे कि टेस्ट ट्यूब बेबी का भी ऑप्शन है. पर श्वेता के इमोशन बड़े प्रेक्टिकल है...
" छोड़ो ना छोना टेस्ट ट्यूब वेस्ट ट्यूब. इट वुड बी प्रीटी कोस्टली. मोरोवर, जब भगवान ही नहीं चाहता तो ! वैसे भी अगर एक बच्चे को गोद ले लेंगे तो शायद जाने अनजाने में किये गए पाप..."
"पर गोद लेंगे तो लड़की."

XXX

बड़ा सा हॉल. बीच में गोल पोडियम जिसमें लगभग सारी 'रिसेप्शनिस्ट'   लडकियां हैं. उनके सामने  उनसा ही स्लिम से माईक. सॉफ्ट से 'रिसेप्शन म्युज़िक' के बीच में गूंजती और भी ज़्यादा 'सॉफ्ट  फैमिनाइन' आवाज़,"डॉ. रजनीश, काइंडली  कम टू  द काउन्टर...  डॉ. रजनीश !"   
उधर दूर ए. टी. एम्. मशीन. उसके बगल में इन्टरनेट करने की सुविधा-६० रुपया प्रति घंटा, न्यूनतम ३० मिनट.
उसके सामने एक और  अज़ीब सी मशीन जहाँ से पंच करके आपको आपकी बारी का नम्बर मिलता है.  जो वहाँ, उधर,  दीवार में लगे बड़े से एल. सी. डी. स्क्रीन के डिसप्ले से सिन्क्रोनाइज़ किया तो आपका नम्बर.  लेकिन अगर आप अंधे हैं तो भी आपको मुश्किल नहीं होगी.
"पेशेंट नम्बर सेवनटी वन ." (वही 'सॉफ्ट फैमिनाइन' आवाज़.) 
मुझे 'पेशेंट' शब्द से आपत्ति है. जब तक सिद्ध नहीं हुआ.तब तक कैसे 'पेशेंट' ? हाईली अनप्रोफेशनल विद रेस्पेक्ट टू 'कोर्ट'. जहाँ  जब तक जुर्म वैलिडेट ना हो जाए तब तक मुजरिम-मुजरिम नहीं.
मैं काफी देर से श्वेता का इंतज़ार कर रहा हूँ. वो डॉक्टर के पास गयी है मेरी रिपोर्ट लेने. पीछे बायीं तरफ़ किताबों का काउन्टर और उसके बगल में कॉफ़ी वेंडिंग मशीन. ठीक कैफिटेरिया  के आगे.
"भाई सा'ब एक कॉफ़ी."
"सत्तर रुपये?"
मेरे पीछे कतार में खड़ा आदमी शायद इसलिए ही कतार से हट जाता है.
"ये लीजिये भाई सा'ब बहुत सारी है आधी आप पी लीजिये."
"अरे नहीं नहीं मेरा मन नहीं है."
"अरे ! मैं कौन सा फ्री में दे रहा हूँ. कॉन्ट्री कर के पी लेते है."
"हा ! हा !! आई टेल यू दीज़ गाईज़ आर फकिंग दोज़ हू आर ऑलरेडी फक्ड अप."
मैं मुस्कुरा देता हूँ.
"बाई द वे हुआ क्या है आपको?"मैं पूछता हूँ.
"कुछ नहीं बच्चे का एच. आई. वी. टेस्ट करवाया था.उसी की रिपोर्ट लेने आया हूँ. "
"एच. आई. वी. टेस्ट ?बच्चे क्या ? क्यूँ?"
अपने सवाल पर गुस्सा आता है मुझे. कॉफ़ी  पीते ही मितली सी आने लगती है. मैं वॉश रूम की  तरफ़ भागता हूँ.
"अरे भाई सा'ब क्या हुआ?"
"कुछ नहीं लगता है... "
मैं लगभग दौड़ते हुए चिल्लाता हूँ.
"...मेरे हिस्से के पैंतीस रुपये गए."
कै करते हुए अपना चेहरा शीशे में देखता हूँ.  वॉशरूम में भी एक स्पीकर लगा हुआ है.
"पेशेंट नम्बर सेवनटी टू."

XXX

उधर छोटा सा टी.पी. ए.  काउन्टर है. एक्ज़िट गेट के ठीक सामने.
एक  आदमी वहाँ पे लड़ रहा है,
"क्या बात कहते हैं सर आप देख लीजिये, आपका हॉस्पिटल  भी लिस्टेड है."
"लिस्टेड.... था !."
"अरे ऐसे कैसे? इंश्योरेंस करते वक्त तो आप लोग..."
"भाई सा'ब मैं कह रहा हूँ ना कि न तो  मैं इस हॉस्पिटल के लिए काम  करता हूँ और न ही  आपकी इंश्योरेंस कम्पनी के लिए."
"तो हरामजादे किसके लिए काम करता है? बीच का है क्या  ! छक्का भेन चोद !!"
वो आदमी दोनों हाथों से ज़ोर ज़ोर से ताली बजाता है.
"भाई सा'ब माइंड योर लेंग्वेज.गाली देनी मुझे भी आती है और अगर पैंट शर्ट उतार लूं तो मैं भी बहुत बड़ा गुंडा हूँ."
"कमीने ! तू पैंट शर्ट और इस टाई के साथ भी बहुत बड़ा गुंडा ही है. गुंडा नहीं दल्ला है दल्ला. पैसे दोनों से लेता है काम किसी के लिए नहीं करता?"
"जाइए भाई सा'ब जाइए यू आर  वेस्टिंग यौर एंड माई टाइम . एंड मोस्ट  इम्पोरटेंनटली  पेशेंट टाइम एज़ वैल. वो... जिनके साथ आप आए हैं."
टी.पी. ए.  एजेंट पेन घुमाते हुए राय देता है.  आदमी को इससे शायद  उस मरीज़ की याद  हो आती है जो बाहर एम्ब्युलेंस में  ज़िन्दगी और मौत से 'टू बी ऑर नॉट टू बी' खेल रहा है. आदमी की नाराजगी अब उसकी गिड़गिडाहट में स्थाई रूप से घुल जाती है.  
"भाई सा'ब वो मर जायेगी."
"तो जाके काउन्टर में पैसे जमा करवाइए और बचा लीजिये उन्हें."
"मेरे पास..." बात लगभग चिल्लाते हुए शुरू करता है पर खुद को समझाते हुए शान्त हो जाता है...
"...मेरे पास पैसे नहीं है इतने."
"देन गो टू सम अदर चीप होस्पिटल ऑर मे बी सम डिसपेंन्सरीज़. यू आर रनिंग आउट ऑफ़ टाईम."
"भाई साब किमोथेरेपी किसी डिसपेंन्सरी  में नहीं होती."
"..................."
"ठीक है..." आदमी लम्बी  निर्णयात्मक सांस लेते हुए दोहराता है.
"..ठीक है, जाता हूँ पर याद रखना की मेरी बीवी को कुछ हुआ  तो उसके जिम्मेवार आप होंगे आप."
आदमी हताश सा बाहर निकल जाता है. उस आदमी की खाली पड़ी सीट पर  मैं बैठ जाता हूँ. 
"क्या बात भाई सा'ब क्या हो गया था?"
"अरे कुछ नहीं इन सब के तो हम यूज़ टू हो गए है सर. जब तक दो चार से लड़ न लो खाना नहीं पचता. देख नहीं रहे थे किस तरह से बात कर रहा था अभी जो आया था."
"वैसे  आप मदद कर सकते थे उसकी. नहीं क्या?"
"देखिये मदद का तो ऐसा है जी हमारी तो दोनों पार्टी से....  समझ रहे हैं ना?लेकिन आदमी को बोलने का ढंग भी तो आना चाहिए न. अभी लाखों का काम हज़ार दो हज़ार में निपट जाना था उन भाई सा'ब का. अब करवाओ सफदरजंग में जाके इलाज़."
"कभी किसी ने मारा वारा तो नहीं ना आपको? आई मीन हाथ पाई वगैरा. या कभी किसी ने झापड़ रसीद किया हो ?"
"भाई सा'ब बीमार को देखेंगे लोग या मुझसे हाथापाई करेंगे? और फ़िर कोई अगर परेशानी में हो तो पाप पुण्य का डर ज़्यादा सताता है उसको. देख नहीं रहे थे कैसे गिड़गिडा के गया था अन्त में."
"आपको दया नहीं आई ? आई मीन  थोड़ी बहुत?"
"आई न ! अपने २ बच्चों और अपनी बीमार माँ पे आई. और रोज़ आती है."
वो व्यंगात्मक ढंग से मुह टेढ़ा  करके  मुस्कुराता है. और सर झुका के कुछ लिखने में व्यस्त हो जाता है.
"कितने भोलेपन से आप अपने हरामीपन कि बातें कह रहें हैं ना?"
मैं भी ठीक उसी की तरह ठहाका लगता हूँ.
"जी ? मतलब ?"  
मेरे सर का दर्द बढ़ने लगता है. पूरा पोडियम घूमने लगता है. मैं अपने आपक को गिरते गिरते संभालता हूँ.
.............................
"पेशेंट नम्बर सेवनटी फाइव."

XXX

जब लोगों को हज़ार हज़ार के ढेर सारे नोट काउन्टर में देते हुए, पैसों को देने से पहले कई कई बार गिनते हुए देखता हूँ तो चीज़ों से वितृष्णा सी होने लगती है. काउन्टर का फिसलन वाला फर्श और उसपे फिसलते (लगभग उड़ते) नोट और टंग-टडंग, टंग-टडंग, छन छ्नाते चमकते सिक्के. बड़ा ही डरावना लगता है मुझे. बड़ा ही...
कैसे कोई 'रिसेप्शनिस्ट'   इतना मुस्कुरा सकती है. लगातार? क्या  पहले दिन जब उसने   ज्वाइन किया होगा उस दिन भी? या अब ये मजबूरी उनकी आदत बन गयी है?  शायद 'यूज़ टू' होना इसे ही कहते हैं.मुझे यकीन है  'यार जुलाहे' की पहली बुनाई में कई कई गिरहें नज़र आती होंगी.  पक्का!
आखिर कैसे वो एक बीमार बेटे की माँ को इस तरह  डांट सकती हैं?
"नहीं माँ जी डॉक्टर सा'ब तो अपने टर्न पर ही देखने आयेंगे ना.और वैसे भी अब आपका बेटा एक दम ठीक है."
"बेटी देख !! तूने माँ कहा है तो वो तेरा भाई हुआ ना? बोल ना डॉक्टर सा'ब से..."
दो रिसेप्शनिस्ट एक दूसरे को देख के मुस्कुरा रही हैं. (लो एक और बीमार से रिश्ता !) 
बुढ़िया का बस एक दांत है, वो भी ज़रूरत से ज़्यादा लम्बा, जब बात करती है तो वो बार बार होठों से बाहर निकल जाता है. आँखों के आंसू, झुर्रियों  से अपना रास्ता खुद ढून्ढ रहे हैं इसलिए उनकी बूँदें नहीं बन पाती, साड़ी इस तरह से तितर बितर है कि माना कोई  मोटी रस्सी लपेटी हो उसने अपने चारों ओर.  हाथ में कागजों कि गंदली सी पोटली. संक्षेप में बुढ़िया का व्यक्तित्व करुणामय विभत्सता से ओत प्रोत है. 
"जाइये माँ जी आप जाके वहाँ बैठ जाइये."
"पेशेंट नम्बर सेवनटी सिक्स."
मेरा पूरा बदन एक झुरझुरी से काँप जाता है.

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"छोना ..."
श्वेता डॉक्टर सा'ब के के साथ तेज़ तेज़ क़दमों से मेरे पास आती है.
"...छोना, डोक्टर कहते हैं तुम्हें कुछ नहीं हुआ. बस कल गैस हो गयी थी तुम्हें शायद. ये देखो हिमोग्लोबिन १६.२, ब्लड प्रेशर...." 
"आय ऍम नॉट ऑल राईट छोना ! आय ऍम नॉट !!  नॉट  एट ऑल !!! मुझे ज़ल्द से ज़ल्द आई. सी. यू. में भर्ती  करो. और तब तक रखो जब तक, जब तक  मैं... मैं... 'यूज़ टू' नहीं हो जाता...
हाँ 'यूज़ टू.'.... "
मुझे पता नहीं क्यूँ चिल्लाना अच्छा लग रहा है. गर्दन टेढ़ी करके एक टक डॉक्टर को देखना चाहता हूँ. पर मेरी आँखें गोल गोल घूम रही हैं.  मैं चाहता हूँ कि मेरे होंठ सूख जाएँ. पर उनमें से झाग निकल रहा है.  मुझे पता है सबलोग मेरी तरफ देख रहें हैं. जहाँ हॉल मैं थोड़ी देर पहले एक सोफ़ेसटीकेटेड सा शोर था... चिड़ियों सा... वहाँ सन्नाटा है.  मैं चुप हो जाना चाहता हूँ... चुप चुप....
अपने से कहता हूँ... प्लीज़... प्लीज़... काम डाउन... प्लीज़ssss....
पर...
"मुझको भी तरकीब सीखा  कोई...
...भोसड़ी वालेsssss !"
मुझे बड़ा अच्छा लग रहा है, इसलिए अपने को रोकता नहीं हूँ. और तेज़ चिल्लाता हूँ, सोचता हूँ अपने बाल भी खींचूँ....
हाँ... ऐसे... अरे वाह ! इसमें भी बड़ा मज़ा है ! रीलिफ ! स्ट्रेस बस्टर है ये तो,  और तेज़ तेज़ चिल्लाना...
"यूज़ टू ! यूज़ टू !!  यूज़ टू !!!....  यूज़ टू... उस... उस... हरामी इंश्योरेंस एजेंट की तरह! कमीना साला !!"
"क्या हो गया छोना तुम्हें."
"मिसेज़ साह,  यू वुड हेव कंसल्ट हिम टू अ साईकेट्रिस रादर."
"साले भडुवे! तू बताएगा मेरी बीवी को. तू? जा ! जा के लोगों की किडनियां बेच भेन चोद ! बीमार लड़कियों से  अपनी दिमाग की बीमारी ठीक करवाता है. और ये... ये जो... कॉल गर्ल्ज़ बिठा रक्खी हैं तूने काउन्टर में..."
मुझे मन हो रहा है कि माईक में बोलूं...
"कितना पैसा लेती हैं आप मैडम ! एक रात का?"
मेरी आवाज़  चारों ओर के स्पिकर्ज़ से आ रही है. खुश हो के ताली बजाता हूँ. उछल उछल के. अपने कपड़े भी फाड़ना चाहता हूँ पर लोग मुझे पागल समझेंगे  इसलिए नहीं फाड़ता.  फ़िर माईक पकड़ लेता हूँ.
"यूज़ टू ! यूज़ टू !!  यूज़ टू !!!"
मैं गिर पड़ना चाहता हूँ... उस फर्श पे. हटो हटो सब... मैं  गिर रहा हूँ.
कहीं दूर से आवाज़ आ रही है.
"नर्स... आई. सी. यू..."
............................
शान्त ! सन्नाटा...
फ़िर से, कहीं दूर से वही  चिड़ियों की चहचहाने सी सोफ़ेसटीकेटेड शोर की आवाज़ आ रही है.मेरी आँखें बंद हो रही हैं...
मैं अर्ध चेतन अवस्था में भी मुस्कुराता हूँ, और बड़ बड़ाता हूँ.
"यूज़ टू... यूज़ मम्म... मम्म... मम्म... "
......................................
"पेशेंट नम्बर सेवनटी नाइन."

XXX

"क्या हो गया था तुम्हें कल?"
"क्या?"
"डॉक्टर कहते हैं कि तुमको ज़ल्द से ज़ल्द किसी साईकेट्रिस से.."
"ह्म्म्म... मैंने कहा था ना कि मुझे नहीं आना यहाँ."
"कुछ खाओगे?"
"कमर  में दर्द है.बड़ी ज़्यादा  उफ़ !"
"हाँ कल गिरे थे ना तुम. ना ना रहने दो उठो मत. सच पूरे नौटंकी हो! "
श्वेता मेरी आँखों में मेरी गिल्ट पढ़ सकती है. इसलिए मुझे कम्फर्टेबल करने के लिए मुस्कुराती है.
"आय ऍम सॉरी फॉर वटएवर आई डिड यसटरडे, एंड आय लव यू."
इस वक्त उसका, अपना हाथ  मेरे हाथ में फंसा के दबाना अच्छा लगता है.
"इट्ज़ ओ.के. एंड मी टू."
"भूख लगी है यार. कैन यू अरेंज अ कॉफ़ी?  एंड यस...  सम स्नैक्स, मे बी?"
थोड़ी देर अपलक मेरी आँखों को देखती है. मेरे हाथ को और फ़िर  दबाती है. हाँ में सर हिला के बाहर चली जाती है.
"और सुनो... कॉफ़ी बाहर से लाना !"

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सामने वाले बैड में एक ६-७ महीने का बच्चा लेटा है. गोल गोल आँखें दूर से देखने में कहीं से भी बीमार नहीं लगता. उसे ग्लूकोज़ चढ़ रहा है. उसके बाप की आँखें लाल हैं. और चूंकि उसकी आँखें लाल हैं इसलिए यकीनन वो उसका बाप ही है. बच्चे के ऊँघते ही वो बच्चे के  गाल थपथपाने लगता है. हर बार बच्चे के गाल थपथपाते वक्त वो अपनी आँख गीली कर लेता है.
"उठ बेटा. उठ जा !"
बाप के बगल में ही एक २५-२६ साल का युवक बैठा है. युवक  चुप है. लगता है कि युवक ने भविष्य  की  डरावनी सच्चाई को स्वीकार कर लिया है. इसलिए उसकी आँखें पथरा गयी सी लगती हैं. पर बाप बोल रहा है उस युवक से लगातार...
"ग्लूकोज़ का नशा है ना इसे इसलिए. हुआ कुच्छ भी नहीं है."
पर युवक की पथराई  हुई आँखों से आँख मिला के बाप  सिहर  जाता है. उसे युवक के चुप रहने पर भी  खीज होती है.
"तू ऐसा चूतियों सा चेहरा बना के क्यूँ बैठा है बे? जा ! घर जा अपनी मामी को भेज....   ...साला!"
युवक चुपचाप उठ के चल देता है.
बाप फ़िर बेटे के गाल थपथपाता है. एक नियत रोबोटिक प्रक्रिया सा...
"उठ बेटा. उठ जा !"
उसकी नज़रें मेरी नज़रों से मिलती हैं. सवाल करती सी, अनुनय करती सी, गिड़गिड़ाती सी...
मानो कहती हों,"भाई साब... बात करो ना... इतना ही कह दो कि ये ठीक हो जाएगा."
मैं भी चाहता हूँ उससे सच में पूछूं...
"क्या हुआ आपके बच्चे को?"
पर मैं, पता नहीं क्यूँ मैं नहीं पूछता हूँ. मैं वहाँ से नज़रें हटा लेता हूँ. मानो मैं उस बाप का अपराधी हूँ.

XXX

"ढेंण ट ढेंण ! कॉफ़ी केपेचिनो एंड फ्रेंच फ्राइज़ लव !! "
"उस आदमी को देखती हो?"
"हाँ! क्या हुआ है उसके बच्चे को पूछा तुमने?"
"ना!"
"उसकी आँखें देखीं ? कितनी लाल हैं?"
हम दोनों उसकी आँखें देखते हैं. उससे फ़िर नज़र मिलती है. हम तीनों मुस्कुराते हैं.
"रात भर सोया नहीं होगा."
"या रात भर रोया होगा."
"बता सकती हो वो बच्चे को सोने क्यूँ नहीं दे रहा? बच्चा जब भी ऐसी कोशिश करता है. वो क्यूँ उसे थपथपा देता है?"
"नॉट श्योर.  डॉक्टर ने कहा हो शायद."
"हाँ शायद!"
"..........."
"छोना कॉफ़ी तुम पी लो. मेरा मन नहीं है. सर में दर्द है. सोना चाहता हूँ."
"तुमने कल से कुछ नहीं खाया."
"प्लीज़ छोना"
"पर..."
"प्लीज़..."
मैं बेड से तेज़ी से उठता हूँ. (जितना तेज़ भी हो सके)
"चलो घर चलते हैं. फिज़िकली तो एक दम ठीक हूँ मैं."
उठ कर तेज़ क़दमों से बाहर निकलता हूँ. पीछे श्वेता अपना पर्स और मेरा सामान समेट के बाहर आती है.
"भाई सा'ब! जा रहे हैं?"
हम दोनों पलट के देखते हैं.
"थोड़ी देर बैठो ना मेरे पास. एक बार पूछ लो मुझसे क्या हुआ है मेरे बच्चे को. एक बार इसके गाल  सहला दो. एक बार..."
उसके बगल में बैठ जाता हूँ. उसके कंधे में हाथ रख देता हूँ. श्वेता बच्चे के बालों में हाथ  फेरती है.
"शो  रहा  है." सच बच्चा बड़ा स्वस्थ और बच्चों सा ही प्यारा था पर उसकी आँखें बंद थीं .
"क्या... क्या कहा.. सो ?"
बाप हैरत से अपने बच्चे को देखता है.
श्वेता को कुछ नहीं सूझता, वो वहीँ पे अपना सामान छोड़  के कमरे से बाहर निकल जाती है.

XXX

बाहर निकलते ही उसकी चाल धीमी हो जाती है. बहुत धीमी.
टी.पी.ए. काउन्टर में फ़िर चिल्ल-पौं मची है.
"अरे कैसे कह सकते है आप की ये प्री एग्जिस्टिंग डिज़ीज़ है ?"
"ये देखिये रिपोर्ट दिखाती है."
"पर आपने तो..."
मैं श्वेता की तरफ़ देखता हूँ, वो मेरी तरफ़. हम दोनों के बीच आँखों-आँखों में कुछ बातें होती  हैं. उसकी गीली आँखों में ना  जाने किस बात की चमक आ जाती है. मैं दौड़ के टी.पी. ए. काउंटर में चढ़ जाता हूँ,  घुटनों के बल....
काउन्टर ऊँचा है इसलिए मुझसे थोड़ी परेशानी होती है. मुझसे उस एजेंट को थप्पड़ रसीद करना बहुत अच्छा लग रहा है. स्ट्रेस-बस्टर. एक, दो, तीन...
मुझे कोई नहीं रोकता...
पूरे फ्रंट ऑफिस में थप्पड़ की आवाज़ें गूंज रहीं हैं.
एक नर्स मेरी तरफ़ दौड़ती है,
"ओ माई गोड. ही  विल किल समवन."
श्वेता काफी मेहनत करके  बीच में ही उसे रोक देती है,
"रहने दें नर्स साहिबा. ऐसा कुछ नहीं होगा."
नर्स अपने को छुड़ाने की कोशिश करती है,
"बट सीम्ज़ डेट युअर हबी निड्ज़ हेल्प एज़ वेल."
"नो वरीज, वो अब बिल्कुल ठीक है. इनफेक्ट,  ही  इज  फीलिंग मच बेटर नाऊ."
"............." नर्स अब अपने को श्वेता से छुड़ाने की कोशिश नहीं करती.
मुझे हॉस्पिटल से बाहर निकलते हुए देख श्वेता भी नर्स को झटककर मेरे पीछे  दौड़ती है.
"छोना... सुनो... सुनो ना...  क्या मरे हुए बच्चे को गोद लिया जा सकता है?"
"पेशेंट नम्बर ट्वेंटी वन."

1 टिप्पणी:

  1. कैसे कोई 'रिसेप्शनिस्ट' इतना मुस्कुरा सकती है. लगातार? क्या पहले दिन जब उसने ज्वाइन किया होगा उस दिन भी? या अब ये मजबूरी उनकी आदत बन गयी है? शायद 'यूज़ टू' होना इसे ही कहते हैं.मुझे यकीन है 'यार जुलाहे' की पहली बुनाई में कई कई गिरहें नज़र आती होंगी. पक्का!
    superb...!!

    "भाई साब... बात करो ना... इतना ही कह दो कि ये ठीक हो जाएगा."
    ................"पेशेंट नम्बर.....!!

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